Thursday, September 3, 2009

फुरकत

लगाले गले इस मदहोश रातको,
कल थामने इसे शायद यहाँ हम ना हो

कहने दे बातोंमे, जो अबतक ना कहा,
लब्जोंकी शायद कल इतनी हिम्मत ना हो

बढ़नेदे धड्कनको, साँसोंकी दहलीजसे आगे
दिलोंमे कल शायद इतनी हरकत ना हो

आखोंसे महसूस करने दे, आखोंकोही बयाँ करनेदे
जज्बातोंकी शायद कल कोई सूरत ना हो

होटोंसे छुलेनेदे होटोंको, हयाकी लाली बिखरने दे ज़रा
चाँद फिर शायद इतने करीब ना हो

रंग फ़ुलोंमे भरने दे ज़रा, फिजा महक उठने दे
शायद कल दिलोंमे जुदाईकी यूँ तड़प ना हो

जीभरके देखने दे तुझे,ख्वाबोंको शक्ल देने दे जरा
लकीरोंकी शायद कल इतनी हैसियत ना हो

इस पलमें जीलेनेदे ज़रा, लम्होंको जहनमे सिमटे हुए
जिंदगीमे शायद फिर कभी फुरकतही ना हो