Monday, August 13, 2007

बाद्ख्वार

तुम्हे भुलकर जीने की कोशीश में,
तुम्हे याद कर मरते है,
गम को अपने नझ्म बनाकर
महफिलों मे बयाँ करते है..
सुर्ख होठों की नमी ढूंढ्ते
शब के अंधेरोमें फिरते है,
झुकती आँखों की महकशी के प्यासे,
हम मय के प्याले भरते है..


मुलाकात

एक कहानी मुझेभी तुमसे कहनी थी
मेरी मुलाकात एक परी से हुई थी,
खोया सा चल रह था मे अकेला किसी रस्ते पे
जब थी मुझसे वह पहली दफा
आयी थी आसमान से उतरके मेरे सामने
भूल गया था मैं एक पल के लिये दुनीया
उस दिन से जबही किसी सवाल मे मैं उलझता
बस उसका नाम लेकर उसको याद करता
बदल देती मेरी हर बैचैनी को धुएमे
और लेजाती मुझे उडाके ख्वाबों के जहाँमे
शुक्रिया जब करता उसके चेहरे को देख
इनकार कर देती उसकी नजर बीना कुछ कहे
अब हर तारीख मे मेरे उसीकी शायरी थी,
मेरी मुलाकात एक परी से हुई थी।
महक उठती थी हवाएं उसके आने से,
भूल जाती तितलीयाँ, फूलोंको अचानक से
छुप जाते सीतारे बादलों के पर्देमे
और शीशे के हो जाते, आईने पलभर के लिए
उसकी नज़रों को देख, शामभी ढलने से इतराती
मुस्कुराती वोह और रातों पे सहर छा जाती
आसूओं मे भी उसके शब् की नमी थी
मेरी मुलाकात एक परी से हुई थी।
उसने कभी मुझे ये सब कहने का मौका ही नही दिया,
एक दिन जब उड़ गयी वह वापस ना आनेके लिए
खो गया फिरसे मैं, उसे आसमानों से पुकारा
नाम लेकर उसका उसे हर जगह धुंडा
पर शायद अब तक बहोत देर हो गयी थी,
सफेद परों को लहराये वह कही दूर उड़ चुकी थी
ना निशानी है उसकी कोई, ना पता ना ठीकाना
यादों मे छोड़ गयी मेरे वह एहसास अपना
वहम था ये मेरा या उसीकी जादुगीरी थी
सच कहताहूँ मेरी मुलाकात एक परी से हुई थी…
आशियाना
बादलों के उस पार अपना एक जहाँ बनाने
उड चले हम एक आशियाना बनाने
तुफानों से लडने लहरों पर उछलने,
चल दिये हम अपने मुकद्दर से मिलने
साहिल को छोड मौजों से रिशता बनाने
उड चले हम एक आशियाना बनाने

रोका हमे इस दरने, इन दीवारों ने,
उलझाया किसीकी सहमी निगाहोंने,
माना ना ये दिल और ना चले बहाने
उड चले हम एक आशियाना बनाने

अनजानी हैं राहें सभी,अजनबी मंजर हैं
खुदा जब हाकिम है मेरा, ना किसी आँधी का डर
आवारगी को अपनी दासताँ बनाने
उड चले हम एक आशियाना बनाने