Monday, August 13, 2007

बाद्ख्वार

तुम्हे भुलकर जीने की कोशीश में,
तुम्हे याद कर मरते है,
गम को अपने नझ्म बनाकर
महफिलों मे बयाँ करते है..
सुर्ख होठों की नमी ढूंढ्ते
शब के अंधेरोमें फिरते है,
झुकती आँखों की महकशी के प्यासे,
हम मय के प्याले भरते है..

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