Monday, August 13, 2007

आशियाना
बादलों के उस पार अपना एक जहाँ बनाने
उड चले हम एक आशियाना बनाने
तुफानों से लडने लहरों पर उछलने,
चल दिये हम अपने मुकद्दर से मिलने
साहिल को छोड मौजों से रिशता बनाने
उड चले हम एक आशियाना बनाने

रोका हमे इस दरने, इन दीवारों ने,
उलझाया किसीकी सहमी निगाहोंने,
माना ना ये दिल और ना चले बहाने
उड चले हम एक आशियाना बनाने

अनजानी हैं राहें सभी,अजनबी मंजर हैं
खुदा जब हाकिम है मेरा, ना किसी आँधी का डर
आवारगी को अपनी दासताँ बनाने
उड चले हम एक आशियाना बनाने

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