Tuesday, January 8, 2013

नि:शब्द


सरेआम मासूम जान इक जब हो रही थी जलील,
चीख चीखकर बेबसी जब सुना रही थी दलील

दिल्ली बता उसवक्त कहा सोया था तेरा दिल?

हवस के मीनाबज़ारमें जब लीलाम हो रहे थे जमीर,
रामलीला की भूमीमें जब सीतामाँ पे चले तीर

दिल्ली बता उसवक्त कहा सोया था तेरा दिल?

तहजीब जब हैवानीयत में हो रही थे तब्दील,
खामोश रात के सीने में जब धस रही थी कील

दिल्ली बता उसवक्त कहा सोया था तेरा दिल?

रवायतों के गुलामों ने कुछ न कहा, सियासत के इमामों ने कुछ नहीं कहा
क्या तू भी गर्दन झुकाए हो गयी है उनकी साजिशोंमे शामिल

सच बता दिल्ली क्या कुछ नहीं कहता तेरा दिल?

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