Thursday, April 23, 2015

यूँ ना मुड़ मुड़कर देखिये हमारी और
ऐसा न हो मुद्दत से मुन्तज़िर दिलोंसे कोई खता हो जाए

छोड़िये ये शर्मो हया, इससे पहले की रुसवा शबाब हो
उठाइये हिजाब चेहरे से, के रोशन आफताब हो जाए 

सम्हलकर रखना कदम, के नींद न खुले सपनों की
चैन न पाये फिर जिंदगीभर कोई, नजर जिसे आप हो जाए

मूँद लीजिये सुरमयी पलकें, के सियाह रात आजाद हो
भटके है मुसाफिर कूचेमें, एक नजर देखिये के महताब हो जाए

संवर लीजिये इन जुल्फों के बिखरे पेचों को
कैद इस कफसमें गलतीसे न कोई सैय्याद हो जाए 
हसरतों में आप के बर्बाद हुए कितने
हम नहीं चाहते की कोई और "नवाज" हो जाए