Tuesday, January 8, 2013

दरख्वास्त


इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे के सारी उम्र आपकी हमारे लिए संवरनेमे गुजर जाए
इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे के आईने छोड आपको इन आंखोंमें झांकने का मन हो जाए

इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे के दिलसे निकला हर गलीज ख़यालभी गजल कहलाये
इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे, के कलाम-ए-पाक से पहले जूबांपार आप का नाम आये
इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे, के पल्के झपकनेकोभी एक अरसा लगने लगे
इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे, के लबों के बीच की दूरी भी फासला लगने लगे
इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे के इन बाहोंकी तपीश में जलकर सुलघने का मन करे
इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे के इन जुल्फोंकी सलांखोंमें बारबार उलझने का मन करे
इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे के रिश्तो में गिलो-शिकवो की अहमियत न रहे
इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे के उसे निभाने के लिये वादे-कसमों की जरूरत न रहे
इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे के सौतन जिंदगीको हर बात पर आपकी शिकायत करनी पडे
और इश्क इतनाभी न कीजिये हमसे के मौत को भी हमे छुनेसे पहले आपसे इजाजत लेनी पडे

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