Sunday, November 15, 2009

है कौन..

छुके बदनको जिसके, महक उठी है हवाये
खुली लटोंमे जिसने, कैद कर रखी घटाए
भीगे आसमातले, पुहारसी बरस रही है कौन

कदमोंकी आहटसे उसकी, बहारे हरतरफ़ खिली
पायलकी बस इक खनकसे, हवामे सरगम है छिडी
रंगोकी धनक बनी, धूपमे निखरी है कौन    

उंगलियोको छुके उसके, कांटे है गुल बने

फुलोंको छोड भँवर सारे, है जिसके पीछे पडे
हुस्न्के इत्रसे महकी, मिसरी की दली है कौन

संग चल दो पल जिसके कम हो फासले
इक नजर देख उसे, आरजूओंके भी पर निकले
धानी चुनर ओढे, शर्मसे लिपटी है कौन

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